Saturday 18 July 2015

Best Patriotic Poems in Hindi - Colletion of hindi Desh Bhakti Kavita's and Poems

Collection of best patriotic poems in Hindi, these poems united many minds and encouraged Indian people to do any thing for the pride and glory of INDIA.

Sarfaroshi Ki Tamanna Ab Hamare Dil Mein Hai - Ram Prasad Bismil

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।

यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
                                               
                                       By  Ram Prasad Bismil

AA RAHI HAI HIMALAY SE PUKAR

 आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग;
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान;
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का कैसा हो वसंत

गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का कैसा हो वसंत

हल्दीघाटी के शिला खण्ड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड;
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

AAG Bahut Si Baaki Hai

आग बहुत-सी बाकी है


   
भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं, 
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है। 

क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है, 
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं। 
जो गुज़रा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं,
और लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं, चक्रवात पर, 
भूकंपों पर, कभी किसी का ज़ोर नहीं, और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं।

कल फिर तू क्यों, पेट बाँधकर सोया था, 
मैं सुनता हूँ, जब तेरे खेतों की बाली, लहर-लहर इतराती है।

अगर बात करनी है उनको, काश्मीर पर करने दो, 
अजय अहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो,
 वो समझौता ए लाहौरी, याद नहीं कर पाएँगे, 
भूल कारगिल की गद्दारी, नई मित्रता गढ़ने दो,

ऐसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टलता है, 
जब मीठी परवेज़ी गोली, गीत सुना बहलाती है।

चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है,
 जब रातें जगने लगती हैं, तभी सवेरा सोता है, 
जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है, 
फसल काटता है कोई, और कोई उसको बोता है।

क्यों तू जीवन जटिल चक्र की, इस उलझन में फँसता है, 
जब तेरी गोदी में बिजली कौंध-कौंध मुस्काती है।

- अभिनव शुक्ला


A Mere Pyaare Watan - Prem Dhava
 
 ऐ मेरे प्यारे वतन

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझ पे दिल कुरबान तू ही मेरी आरजू़, 
तू ही मेरी आबरू तू ही मेरी जान

तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम 
चूम लूँ मैं उस जुबाँ को जिसपे आए तेरा नाम 
सबसे प्यारी सुबह तेरी सबसे रंगी तेरी शाम
 तुझ पे दिल कुरबान

माँ का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है
 तू और कभी नन्हीं-सी बेटी बन के याद आता है
 तू जितना याद आता है मुझको उतना तड़पाता है 
तू तुझ पे दिल कुरबान

छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुँचे हैं 
हम फिर भी है ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की कसम 
हम जहाँ पैदा हुए उस जगह पे ही निकले दम 
तुझ पे दिल कुरबान 

                                     प्रेम धवन

Kadamb Ka Pedh -  patriotic poem

कदंब का पेड़

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।

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